हम मजबूर हैं दुनिया के सब से बड़े लेकिन कमजोर लोकतंत्र को पाकिस्तान बनता हुआ देखने के लिए
अगर कोई बंदूक उठाये और मलाला पर गोली चला दे तो उसे क्या कहेंगे???
'आतंकवादी'
अगर कोई बंदूक उठाये और कलबुर्गी.. पानसरे.. दाभोलकर पर गोली चला दे तो उसे क्या कहेंगे???
अगर कोई पेशावर के स्कूल पर हमला करे और सौ दो सौ बच्चों की हत्या कर दे तो उसे क्या कहेंगे????
'आतंकवादी'
अगर कोई सुनियोजित दंगा भड़काये सैकड़ों मासूम बच्चों को जिंदा आग में झोंक दे.. भीड़ की आड़ ले कर निर्दोषों को पीट पीट कर उनकी हत्या कर दे तो उसे क्या कहेंगे????
कुछ सवालों के जवाब बौद्धिक दोगलेपन का सबूत होते हैं।
खैर तालिबानी विचारधारा के समर्थक पाकिस्तान में बहुत हैं.. और संघी विचारधारा के समर्थक भारत में बहुत हैं.. ये विचारधाराएँ विस्तृत हैं कई संगठनों तक.. कई मस्तिष्कों तक..
पाकिस्तान की अदालतों में तालिबानियों के अपराध नहीं साबित हो पाते और भारतीय अदालतों में संघियों के अपराध नहीं साबित हो पाते..
हम मजबूर हैं दुनिया के सब से बड़े लेकिन कमजोर लोकतंत्र को पाकिस्तान बनता हुआ देखने के लिए.. उनकी नुमाइंदगी करने वाली सरकार हमारी आवाज दबा सकती है, लेकिन हर आवाज को नहीं.. आग है तो धुँआ भी कहीं न कहीं दिखेगा ही.. और दिख गया है.।
एक सिख अधिकार संगठन ने अमेरिका की एक अदालत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए याचिका दायर की है। दक्षिणी न्यूयॉर्क जिले में स्थित संघीय अदालत ने इस याचिका पर अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी को नोटिस जारी कर 60 दिनों के भीतर जवाब मांगा है। सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) नामक संगठन ने अपनी अर्जी में अदालत से संघ को विदेशी आतंकी संगठन घोषित करने की मांग की। संगठन ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि ‘आरएसएस फासीवादी विचारधारा में विश्वास करता है तथा भारत को एक ही प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान वाला हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए आवेशपूर्ण, विद्वेषपूर्ण तथा हिंसक अभियान चला रहा है।' सिख संगठन ने कहा, ‘आरएसएस ईसाइयों और मुसलमानों को जबरन हिंदू बनाने के लिए अपने ‘घर वापसी’ अभियान के कारण सुर्खियों में बना हुआ है। अदालत से आग्रह किया गया है कि आरएसएस, इससे संबद्ध संस्थाओं और इसके सहयोगी संगठनों को विदेशी आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा गया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस, स्वर्ण मंदिर में सेना के अभियान के लिए उकसाने, 2008 में गिरजाघरों को जलाने तथा ईसाई ननों से बलात्कार और 2002 में गुजरात दंगों में आरएसएस की संलिप्तता रही है।
अब कोई कुतर्की यहाँ गुजरात दंगों के लिए गोधरा की घटना न याद दिलाये, क्यों कि गोधरा के अपराधियों को पकड़ना और सजा देना गुजरात सरकार का कर्तव्य था लेकिन ऐसा करने के बजाये गुजरात को जान बूझ कर दंगों की आग में झोंका जाना और गुजरात के शासन प्रशासन द्वारा दंगाइयों का खुला बचाव एक बहुत बड़े राजनैतिक षड्यंत्र की तरफ़ इशारा करता है, वो भले ही जज और वकीलों को पद का तोहफ़ा दे कर बाइज्ज़त बरी हो गए हों.......
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