क्या वाल्मीकि जी मेहतर/भंगी थे?
किसी वेबसाइट से ली गयी पोस्ट है, कोई बताये यह कितनी सच है या झूठ है।
महर्षि बाल्मीकि कौन थे? उनके बारे में विस्तार से रचयिता आदि कवि वाल्मीकि के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए नहीं बल्कि “सफाई कर्मी जाति ” को हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था पर आस्था पक्की करने के तहत दी है। वाल्मीकि का सफाई कर्मचारियों से क्या सम्बन्ध बनता है? छुआछूत और दलित मुक्ति का वाल्मीकि से क्या लेना देना है ? क्या वाल्मीकि छूआछूत की जड़ हिन्दू ब्राह्मण जाति धर्म से मुक्ति की बात करते हैं ? वाल्मीकि ब्राहमण थे, यह बात रामायण से ही सिद्ध है। वाल्मीकि ने कठोर तपस्या की, यह भी पता चलता है कि दलित परम्परा में तपस्या कीअवधारणा ही नहीं है। यह वैदिक परम्परा की अवधारणा है। इसी वैदिक परम्परा से वाल्मीकि आते हैं। वाल्मीकि का आश्रम भी वैदिक परम्परा का गुरुकुल है, जिसमें ब्राह्मण और राजपरिवारों के बच्चे विद्या अर्जन करते हैं। ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि वाल्मीकि ने शूद्रों- अछूतो को शिक्षा दी हो। अछूत जातियों की या सफाईकार्य से जुड़े लोगों की मुक्ति के संबंध में भी उनके किसी आन्दोलन का पता नहीं चलता। फिर वाल्मीकि सफाई कर्मचारयों के भगवान कैसे हो गए? जब हम इतिहास का अवलोकन करते हें, तो 1925 से पहले हमें वाल्मीकि शब्द नहीं मिलता। सफाई कर्मचारियों और चूह्डों को हिंदू फोल्ड में बनाये रखने के उद्देश्य से उन्हें वाल्मीकि से जोड़ने और वाल्मीकि नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्य समाज ने बनाई थी। इस काम को जिस आर्य समाजी पंडित ने अंजाम दिया था, उसका नाम अमीचंद शर्मा था। यह वही समय है, जब पूरे देश में दलित मुक्ति के आन्दोलन चल रहे थे। महाराष्ट्र में डा. आंबेडकर का हिंदू व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह, उत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द का आदि हिंदू आन्दोलन और पंजाब में मंगूराम मूंगोवालिया का आदधर्म आन्दोलन उस समय अपने चरम पर थे। पंजाब में दलित जातियां बहुत तेजी सेआदधर्म स्वीकार कर रही थीं। आर्य समाज ने इसी क्रांति को रोकने के लिए अमीचंद शर्मा को काम पर लगाया। योजना के तहत अमीचंद शर्मा ने सफाई कर्मचारियों के महल्लों में आना-जाना शुरू किया। उनकी कुछ समस्याओं को लेकर काम करना शुरू किया। शीघ्र ही वह उनके बीच घुल-मिल गया और उनका नेता बन गया। उसने उन्हें डा. आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आंदोलनों के खिलाफ भडकाना शुरू किया। वे अनपढ़और गरीब लोग उसके जाल में फंस गए। 1925 में अमीचंद शर्मा ने ‘श्री वाल्मीकि प्रकाश’ नाम की किताब लिखी, जिसमें उसने वाल्मीकि को उनका गुरु बताया और उन्हें वाल्मीकि का धर्म अपनाने को कहा। उसने उनके सामने वाल्मीकि धर्म की रूपरेखा भी रखी। डॉ आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आन्दोलन दलित जातियों को गंदे पेशे छोड़ कर स्वाभिमान के साथ साफ-सुथरे पेशे अपनाने को कहते थे। इन आंदोलनों के प्रभाव में आकार तमाम दलित जातियां गंदे पेशे छोड़ रही थीं। इस परिवर्तन से ब्राह्मण बहुत परेशान थे। उनकी चिंता यह थी कि अगर सफाई करने वाले दलितों ने मैला उठाने का काम छोड़ दिया, तो ब्राह्मणो के घर नर्क बन जायेंगे। इसलिए अमीचंदशर्मा ने वाल्मीकि धर्म खड़ा करके सफाई कर्मी समुदाय को ‘वाल्मीकि समुदाय’ बना दिया। उसने उन्हें दो बातें समझायीं। पहली यह कि हमेशा हिन्दू धर्म की जय मनाओ, और दूसरी यह कि यदि वे हिंदुओं की सेवा करना छोड़ देंगे, तो न् उनके पास धन आएगाऔर न् ज्ञान आ पा पायेगा। अमीचंद शर्मा का षड्यंत्र कितना सफल हुआ ,सबके सामने है। आदिकवि वाल्मीकि के नाम से सफाई कर्मी समाज वाल्मीकि समुदाय के रूप में पूरी तरह स्थापित हो चुका है। ‘वाल्मीकि धर्म ‘के संगठन पंजाब से निकल कर पूरे उत्तर भारत में खड़े हो गए हैं। वाल्मीकि धर्म के अनुयायी वाल्मीकि की माला और ताबीज पहनते हैं। इनके अपने धर्माचार्य हैं, जो बाकायदा प्रवचन देते हैं और कर्मकांड कराते हैं। ये वाल्मीकि जयंती को “प्रगटदिवस” कहते हैं. इनकी मान्यता है कि वाल्मीकि भगवान हैं, उनका जन्म नहीं हुआ था, वे कमल के फूल पर प्रगट हुए थे, वे सृष्टि के रचयिता भी हैं और उन्होने रामायण की रचना राम के जन्म से भी चार हजार साल पहले ही अपनी कल्पना से लिख दी थी। हालांकि ब्राह्मणों द्वारा “सफाई भंगी जाति” की दुर्दशा की कल्पना तक उन्हें नहीं थी ।
आज भी जब हम वाल्मीकि समाज के लोगों के बीच जाते है तो सफाईकर्मी वाल्मीकि के खिलाफ सुनना तक पसंद नहीं करते। बाबा साहब जी ने सही कहा है कि धर्म के कारण ही हम लोग आज भी गुलाम है। और जब तक इन कालपनिक धर्मों को मानते रहोगे तब तक मूलनिवासी चाहे वो किसी भी समुदाय से है उसका उद्दार संभव नहीं है। काल्पनिक कहानियों के आधार पर खुद को सर्वोच्च साबित करना ही असली ब्राह्मणवाद है। और यही काम आज हर कोई मूलनिवासी कर रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आज मूलनिवासी ही अपनी गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिमेवार है।
धर्म वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत ब्राह्मणवादी लोगों ने मूलनिवासियों को मानसिक गुलाम बनाया है और जब तक मूलनिवासी धर्म को नहीं छोड़ेंगे तब तक ना तो मूलनिवासी समाज एक हो सकता है और ना ब्राह्मणवाद से मुक्त।
शायद मेरे कुछ भाई मेरी इस पोस्ट मुझे गलत समझने लगेंगे। लेकिन यही सच है और हमे इस सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा। वाल्मीकि ने अपने समय में या ब्राह्मणों द्वारा लिखित रामायण जैसी किताबों में कही नहीं लिखा कि मूलनिवासियों से प्यार करो। मूलनिवासियों को उनके अधिकार दो या मूलनिवासियों को सम्मान दो। यह बात बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने ही लिखी है। इसलिए हमारा भला कोई भी काल्पनिक भगवान या कहानियों से नहीं हो सकता। बात को समझो “काल्पनिक और मनघडंत कहानियों के आधार पर अपने आप को सर्वोच्च साबित करना ही ब्राह्मणवाद है।” जिस दिन आप लोग यह बात समझ जाओगे ठीक उसी दिन ब्राह्मणवाद से मुक्ति हासिल कर लोगे।
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जय वामिकि जी
ReplyDeleteजय भंगी सेना
तप तो राक्षस भी करते थे और ये वेदिक परंपरा नही है यग्य व हवन वेदीक परमपरा मे आती है
भंगी मेहतर समाज का जलवा
Deleteवाल्मीकि ब्राह्मण था।जब शूद्रों को तपस्चर्या करने पे मार दिया जाता था और वेद पढ़ने पे जुबान काट दी जाती थी तब एक शूद्र भंगी महात्मा केसे बन सकता है?
विदेशी आर्य ब्राह्मणों के यज्ञ का सबसे पहले भंगी समाज ने विरोध किया था याने भंग किया था।इस लिए वो भंगी कहलाए और उनको सजा के तौर पे सफाई का काम दिया।वो हवन पूजा को पाखंड मानते थे।भंगी समाज को गर्व से खुद को भंगी कहना चाहिए।भंगी वीर थे,उनका भी भारत में सम्राज्य था।भंगी को वाल्मीकि बनाना ब्राह्मणों की चाल है।भंगी समाज का चिन्ह नाग था।वो भगवान को नहीं मानते थे।
I know that there appears no connection between valmiki and scavenger caste nor professionally nor socially but it is true that they are definitely hindus. Only one chance that connect to valmiki is that he was brought up by bheel family and bhangi society is very very closely relate to bheel culture. The prfassion of scavenging is imposed on them forcefully by uppercaste, mughals.lack of knowledge,
ReplyDeleteLack of knowledge ,social unacceptance, jungle culture made they socially poor therefore they had no choice but compelled to choose this lowest job to feed their families.
ReplyDelete—आपका झूठ पकडा गया —
ReplyDeleteसवाल जाति पर भी किया जा रहा है कि 1931 से पहले भारत की जनगणना में वाल्मीकि नाम क्यों नहीं ? यह भी एक ठगने की कोशिश है। वाल्मीकिन कौम को जड़विहीन कर देने की।
1891 की जनगणना के कुछ हिस्से जो हमें मिले। जैसे Census Of India का Punjab And Its Feudatories के Volume XXI-Part III Table F में वाल्मीकि नाम एक जगह 3056+211 अंकित है। 1891 के Volume XIX पार्ट-1 के पृष्ठ 90 पर 32113 जनसँख्य दर्शाई है।
ओम प्रकाश वाल्मीकि अपनी किताब सफाई देवता के पृष्ट 64 पर 1891 की जनगणना से वाल्मीकि जाति की संख्या 6105 लिखते हैं। Census Of India Volume-I पृष्ठ 293 यह मजबूत तथ्य है। नव-बौद्ध कृपया ध्यान दें 1891 ही पढ़ें, ये 1931 से पहले होता है।
1901 के Census Of India के खंड XVII Part I में और विस्तार से दर्शाया गया है। इसमें पंजाब और उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर की जनगणना के बारे में लिखा है। भारत विभाजन से पहले के पंजाब के सभी जिलों की अलग-अलग संख्या अंकित की है।
सारे पंजाब में वाल्मीकि नाम की संख्या 2409 अंकित की गई। इसके बाद एक अतिरिक्त पार्ट {Subsidiary} जोड़ कर केवल दो जिलों होशियारपुर और जालंधर में वाल्मीकि नाम की संख्या 16,878 अंकित की गई है। ऐसे ही पुरे पंजाब में मज़हबी {वाल्मीकि सिख} 5058 बताया गया है।
1911 की जनगणना में वाल्मीकि नाम को 13,65,835 लोगों ने लिखवाया। याद रखें हमारी बस्तियों में आने वाले जब आंकड़ा लिखते हैं बहुत मन-मर्जी करते हैं। कई बार तो नाम घटिया तरह से लिखे जाते हैं, पूछा ही नहीं जाता असली नाम बताओ। इसमें महिलाओं का अनुपात भी बहुत कम दिखाया गया है।
Census Of India 1921 के खंड XV पार्ट-I में दिल्ली और पंजाब की जनगणना अंकित की है। पंजाब में वाल्मीकि 2,21,027 और दिल्ली में 12608 संख्या बताई गई। इस्लामिक प्रभाव और उर्दू में वाल्मीकि शब्द को गलत पढ़ने के चलते पंजाब में 6,37,205 लोगों ने खुद को लालबेगी लिखवाया।
लाल बेग कोई व्यक्ति नहीं हुआ। न कोई पीर। यह उर्दू में लिखे वाल्मीकि शब्द को गलती से लालबेग पढ़ लिया गया। अशिक्षा के कारण कभी वाल्मीकि को लालबेग, कभी बाला शाह, कहीं बालऋषि, कहीं बाल्मीक, तो कहीं बाल्मिकी कहीं सुपच लिख गया। भाव वही थे रामायण के रचयिता।
Census Of India का Punjab And Its Feudatories के Volume XIX -Part I पृष्ठ 200-201 पर। E.D.Maclagan ICS {वर्तमान में IAS} जो Provincial Superintendent Of Census Operations थे वह वर्गीकरण और विश्लेषण करते हुए पार्ट V में चेप्टर Sects Of The Sweepers में लिखते हैं,
The Mughal from of the name Lalbeg is remarkable, and it has been suggested that the word may have originated in a MISREADING of the Urdu writing for Balmik {VALMEKI}. मुगलों द्वारा लालबेग नाम उल्लेखनीय है, और यह सुझाव दिया गया है कि इस शब्द की उत्पत्ति बाल्मीक {VALMEKI} के लिए उर्दू लेखन के गलत प्रचार से हुई है।
"It seems pretty well agreed that there is little or no practical difference in the cults of Balmik {Valmeki} and Lalbeg, but it would appear that some sweeper families prefer the worship of one to that of the other.
"यह बहुत अच्छी तरह से सहमति है कि बाल्मीक {वाल्मीकि} और लालबेग में बहुत अल्प {कम} या कोई व्यावहारिक अंतर नहीं है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ स्वीपर परिवार एक की पूजा, दूसरे को पसंद करते हैं। अर्थात पूजा सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान की ही करते थे मगर लालबेग को पसंद करते थे।
एक यह कि लालबेग केवल एक शब्द है जो उर्दू के एक लेखन की गलती से पैदा हुआ। याद रहे कि उस वक्त क़िताबत यानि हाथ से लिख कर बाद में छपाई के लिए जाता था। एक छोटी सी त्रुटि की भूल से बाल्मीक को लालबेग पढ़ लिया गया। एक गलती ही प्रचलित हो गई। जैसे अभी कई शहरों के नाम दरुस्त {Correct} किये जा रहे हैं। मिसाल के तोर पर मुंबई, चेन्नई।
दरअसल वाल्मीकि कौम के खिलाफ यह एक साज़िश थी। जिसे ज्यादा दलित साहित्यकारों व गैर वाल्मीकिन दलित राजनेताओं ने हवा दी और वाल्मीकि कौम के विद्वान् भी इस आँधी में बह गए। उन्हें घेर कर कुटिल झूठ को इतनी बार और अलग-अलग मुखोटों से कहलवाया गया।
वाल्मीकिन विद्वानों ने खुद सोचने की जरूरत ही नहीं समझी। अरुंधति रॉय अपनी किताब The Doctor and the Saint के पृष्ठ 101 पर वही भूल करती हैं। वे दलित साहित्यकारों का दिया चश्मा पहन लेती हैं कि वाल्मीकि नाम बाद में जुड़ा।
इससे पता चलता है कि या तो तुम्हारी Research अधूरी है या फिर ये सब किसी साजिश के तहित झूऊ बोला जा रहै है ।
उपर्युक्त आलेख से यह स्पष्ट नही होता है कि महर्षि बाल्मीकि के वंशज ही आज के बाल्मीकि, मेहतर ,भंगी, चूहडा,आदि नाम बाली जाति है
Deleteजब वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत शुद्र को शिक्षा का अधिकार नही था तो यदि बाल्मीकि शुद्र थे तो उन्होंने शिक्षा कैसे पाया?
ये कहा लिखा है कि शूद्र को शिक्षा का अधिकार नही था। क्या पहले शिक्षा आज की तरह वर्णमाला, अल्फाबेट, गणित, रसायन भौतिकी पढ़ाई जाती थी
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