जनता की आवाज मर गई
जैसे ही मिडिया बिक गया
वैसे ही जनता की आवाज मर गई
अगर बिकाऊ मिडिया में हिम्मत है, तो बिकाऊ मिडिया को भारत की जनता की परेशानियों की सच्चाई बतानी चाहिए
नोटबंदी की सच्चाई बताने के लिये बिकाऊ मीडिया को
खेतीहर मजदूरों से सवाल पूछने चाहिए
सफाई कर्मचारियों से सवाल पूछने चाहिए
देहाती श्रमिकों से सवाल पूछने चाहिए
मछुआरों से सवाल पूछने चाहिए
गरीब बीमार व्यक्ति से सवाल पूछने चाहिए
निर्धन गर्भवती महिलाओं से सवाल पूछने चाहिए
गरीब विधवा महिलाओं से सवाल पूछने चाहिए
खदानों में पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों से सवाल पूछने चाहिए
मंडियों में वजन ढोने वालें श्रमिकों से सवाल पूछने चाहिए
साइकिल रिक्शा वालों से सवाल पूछने चाहिए
गांवों के बैंकों के बाहर खड़े किसानों से सवाल पूछने चाहिए
कि वो लोग नोटबंदी से कितने खुश हैं अथवा दु:खी हैं
बिकाऊ मिडिया सवाल सिर्फ उनसे ही पूछता है जो सरकार के फैसले का समर्थन करते हैं
जो लोग नोटबंदी से परेशान हैं, उनके पास तो बिकाऊ मिडिया अपना कैमरा भी नहीं ले जाता है
बिकाऊ मिडिया सच्चाई बताने और दिखाने से क्यों डर रहा है
क्या प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ ढह गया है
जनता की परेशानी का एक कारण बिकाऊ मिडिया भी है
जो सरकार से नजदीकी बनाए रखने के लिए सच्चाई को झूठ में बदल-बदलकर सरकार की झूठी वाहवाही कर रहा है
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