धर्म एक अफ़ीम है।
कार्ल मार्क्स ने कहा था -
'धर्म एक अफ़ीम है।
'यानि ये एक नशे के समान है। यह बात जिन-जिन देशों को समझ में आ गया,
वहाँ स्थिति बदल गयी,
वो देश गरीब थे, अचानक विकसित हो गए।
हमें समझ में नहीं आया, तो हम गरीब थे और आज भी गरीब हैं।
हम नहीं समझ पाये कि जिसे हम अमृत तुल्य समझ रहे हैं वो वास्तव में एक धीमा जहर है। जो हमें और हमारे पूरे समाज को तथा हमारे देश को धीरे-धीरे नष्ट कर रहा है।
इसी धर्म रूपी अफ़ीम ने हमें अंधा कर दिया है,
जिस कारण आज विज्ञान का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलने के बावजूद हम अज्ञान के अंधकार में आकंठ डूबे हुए है।
विज्ञान हमें चिल्ला-चिल्ला कर बता रहा है कि पृथ्वी गोल है और सूर्य का चक्कर लगाती है, परंतु हम धर्म के नशे में होने के कारण ‘मानस’ का अखण्ड पाठ करवाते हैं,
जो कहती है कि पृथ्वी कछुए की पीठ और शेषनाग के फन पर स्थित है।
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