उनको रास्ते में पड़े कट्टे मिल जाते हैं पर वाहन नहीं मिलते जिसके सहारे वह फरार हो सकें।

भारत की सबसे सुरक्षित और सबसे पहले ISO : 9002
प्रमाणित सेन्ट्रल जेल के 2-3 सबसे सुरक्षित सेल में अलग अलग बंद 8 खुँखार आतंकवादी ( हाँलाकि अब तक कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ) रात के तीन बजे लकड़ी और तूथब्रश(प्लास्टिक) की चाभी बनाकर दोनो सेल के लोहे का सुरक्षित ताला खोल लेते हैं 
और सीसीटीवी कैमरे को धता बताते हुए तमाम सुरक्षा चक्रों को तोड़कर 
एक कांस्टेबल रमाकांत यादव की गला काट कर हत्या कर देते हैं 
और आखिरी 20 से 25 फिट ऊँची दीवार को फाँदते हुए जेल से निकल जाते हैं। 
फिर रात में 3 से 10 बजे सारे माल और दुकान बंद होते हैं 
तब वह मँहगे ब्रान्डेड जूते , घड़ियाँ और कपड़े खरीद कर पहन लेते हैं 
और जेल के कैदी संभवतः कट्टे साथ नहीं रखते तो उनको रास्ते में सड़क पर गिरे पड़े 4-5 देशी कट्टे और 2-3 चाकू मिल जाते हैं 
और सब के सब हाथ से हाथ मिलाते हुए एक साथ एक ही जगह की ओर चले जाते हैं , 
उनको रास्ते में पड़े कट्टे मिल जाते हैं पर वाहन नहीं मिलते जिसके सहारे वह फरार हो सकें। 
फिर सब के सब एक जगह ही पहाड़ी पर खड़े हो जाते हैं 
और पुलिस से बातचीत करने लगते हैं 
जिससे पुलिस को अपनी जान बचाने के लिए उनपर एक-47 से मार डालने के लिए विवश होना पड़ता है 
और मारे जाते हैं। 
ISO : 9002 प्रमाणित जेल को कुछ मत कहिए जिसके ताले लकड़ी और प्लास्टिक से खुलते हों
दरअसल यह देश की व्यवस्था का ही एक स्वरूप है , 
देश की व्यवस्था भी ऐसी ही है।
बेवकूफ थे आठों , पुलिस की कहानी हमेशा की तरह सच्ची है 
पर क्या करें उन वीडियो का जो ग्रामीणों ने बना डाले।

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