Shayari part 104
1. जिसकी शायरी मेँ होती हैँ अक्सर सिसकियाँ...
वो शायर नहीँ किसी बेवफा का दिवाना होता है...
2. “कुछ लम्हे बिताएं हैं मैंने उसके संग,
कैसे कह दूं खुद को कि बदनसीब हूँ मैं….”॥
कैसे कह दूं खुद को कि बदनसीब हूँ मैं….”॥
3. उसने देखा ही नहीं, अपनी हथेली को कभी,
उसमे हल्की सी लकीर, मेरी भी थी.....
उसमे हल्की सी लकीर, मेरी भी थी.....
4. हम वो ही हैं, बस जरा ठिकाना बदल गया हैं अब...!!!
तेरे दिल से निकल कर, अपनी औकात में रहते है...!!!
तेरे दिल से निकल कर, अपनी औकात में रहते है...!!!
5. मालूम नहीं क्यूँ मगर कभी कभी अल्फाजों से ज्यादा,
मुझे तेरा नाम लिखना अच्छा लगता है....!!
मुझे तेरा नाम लिखना अच्छा लगता है....!!
6. कई लोगो से सुने थे मोहब्बत के किस्से..
खुद कर ली तो जाना ये बदनाम क्यूँ है..
खुद कर ली तो जाना ये बदनाम क्यूँ है..
7. डर लगता है उसके तस्वीर की तारीफ करने में,
जमाना पूछ ना बैठे ये तेरी कौन लगती है.....?
जमाना पूछ ना बैठे ये तेरी कौन लगती है.....?
8. लोग पढ़ लेते हैं मेरी आखों से तेरे प्यार का नशा..
मुझ से अब तेरे इश्क़ की हिफाजत नहीं होती..
मुझ से अब तेरे इश्क़ की हिफाजत नहीं होती..
9. तेरी यादें हर रोज़ आ जाती है मेरे पास...
लगता है तुमने बेवफ़ाई नही सिखाई इनको..
लगता है तुमने बेवफ़ाई नही सिखाई इनको..
10. लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं,
मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर है...
मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर है...
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