हमें शांति रखनी चाहिए? या क्रांति करनी चाहिए ?
सबसे पहले हमें शांति और क्रांति शब्दों का अर्थ जानना जरूरी है,
शांति का अर्थ होता है चुपचाप रहकर घटना की पूरी स्थिति को समझना एवं समाधान की प्रतिक्षा करना जबकि क्रांति का अर्थ होता है कि जब शांति से समस्या का समाधान नहीं होता है तब उस समस्या का अंत करने के लिए कुछ करना पड़ता है ,उस करने की कार्यवाही को ही क्रांति कहते हैं।
क्रांति करने वाला शांति का सबसे अधिक पक्षधर होता है और वह क्रांति भी शांति बनाए रखने के लिए ही करता है ।
क्रांति करने वाला समस्या का स्थाई समाधान चाहता है और उसके लिए वह अपना जीवन तक भी बलिदान करने को तैयार रहता है ।
आज हमारा समाज बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है, इस देश का मूल निवासी होते हुए भी शरणार्थी जैसा जीवन बसर करने को मजबूर है, विदेशी आर्यों ने आकर हमारी खेती को छीन लिया गया जिससे हमारे समाज को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया गया है। खेती की जमीन की बात तो छोडो एक घर बनाने के लिए भी हमारे समाज के अधिकतर लोगों के पास जमीन नहीं है जिसके कारण कई करोड़ो लोगों को या तो घुमक्कड़ जीवन बिताना पड़ रहा है या फिर रेल की पटरियों के पास या गन्दे नालों के पास झुग्गी झोपड़ियों में नर्क का जीवन बिताना पड़ रहा है। अब तो नोबत यहां तक आ चुकी है की मरने के बाद अंतिम संस्कार करने के लिए भी दो गज जमीन के लाले पड़ गए हैं, अभी कुछ दिनों पहले ही CRPF के शहीद को उत्तर प्रदेश में अंतिम संस्कार के लिए जमीन नहीं मिली थी क्योंकि वह अनुसूचित जाति में पैदा हुआ था, इससे कुछ महीनो पहले राजस्थान के सीकर जिले में मेघवाल समाज के एक व्यक्ति के मृत शरीर को चिता
से उठाकर मनुवादियों ने दूर फैंक दिया था, उन्ही दिनों राजस्थान के अजमेर जिले में कालबेलिया समाज के एक व्यक्ति की लाश का अंतिम संस्कार करने के लिये जमीन नहीं मिली थी और कई दिनों तक प्रशाशन के चक्कर काटने पड़े थे,
अब सोचने वाली बात यह की हमारे ही देश में हमारे लोगों के पास खेती करने के लिए जमीन नहीं, मकान के लिए जमीन नहीं, दुकान के लिए जमीन नहीं और यहाँ तक की मरने के बाद श्मशान तक जमीन नहीं है तो क्या हमे शांति रखनी चाहिए या अपना हक पाने के लिए क्रांति करनी चाहिए ?
हमारे समाज के पास कारखाने नहीं,कोई व्यापार नहीं, स्वंय का कोई रोजगार नहीं ,हमारे लोग चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनकर अपने परिवार का गुजारा किया करते थे ,मनुवादियों को वह भी नागवार गुजरा और चतुर्थ श्रेणी की नोकरी को ही खत्म कर दिया गया, फिर भी इनको चैन नहीं मिला और सरकारी नोकरियों का निजीकरण कर दिया गया, जिससे हमारे लाखों पढ़े लिखे लोग बेरोजगार होकर घूम रहे हैं, फिर भी इन मनुवादियों को शांति नहीं मिली है और अब तो वे आरक्षण को बिलकुल ही हटाने की बात करने लगे हैं ,अब हमे शांति रखनी चाहिए या फिर क्रांति करनी चाहिए ?
हमारे समाज के लोगों को न्याय नहीं मिलता है, बिहार में 78 लोगों का नरसंहार करने पर भी सभी मनुवादियों को बाईज्जत बरी कर दिया गया, राजस्थान में डांगावास कांड, घेनडी पाली कांड, डेल्टा कांड इसके ताजा उदाहरण सबके सामने हैं फिर भी हमे शांति रखनी चाहिए या क्रांति करनी चाहिए ?
हमारे समाज को शिक्षा से वंचित करने के लिए अच्छी भली शिक्षा को निजी स्कूलों के हवाले कर दिया गया एवं अब शिक्षा एक व्यापार बन चुका है, पैसा फैंको डिग्री देखो का घिनोना खेल खुला चल रहा है, हमारे लोगों के पास पब्लिक स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं इसलिए हमारे लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने पर मजबूर हैं और सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को मनुवादी सरकारें पढ़ाने नहीं देती हैं इसलिये वे अध्यापक भी अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में पढ़ने भेजते हैं और हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद किया जा रहा है तो क्या फिर हम शांति रखें या
क्रांति करें ?
हमारे समाज की महिलाओं की खुलेआम आबरू लूट ली जाती है और पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती है व् मनुवादी राजनेता और बड़े अधिकारी उस जुल्मी को बचाने में ही लग जाते हैं अभी हरियाणा के रोहतक की ताजा घटना सबके सामने है की अनुसूचित जाति की महिला सबके सामने गिड़गिड़ाती रही की वे बलात्कारी दरिंदे मुझे धमकियां दे रहे हैं की या तो समझोता करले नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा ,लेकिन उस sc अबला नारी की फरियाद किसी ने नही सुनी और उसके साथ दुबारा बलात्कार कर दिया गया है , क्या अब भी हम शांति रखें या क्रांति करें ?
हमारे समाज के लोगों को पशु से भी नीचा समझा जाता है कुछ वर्षों पहले हरियाणा में एक मृत पशु के कारण हमारे पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था और अब बिलकुल ताजा उदाहरण गुजरात के ऊना का सबके सामने है क्या अब भी हम शांति रखें या फिर क्रांति करें ?
हमारे मुक्तिदाता बाबा साहब आंबेडकर का कहना था की अपमान के 100 वर्ष जीने से तो सम्मान की 2 दिन की जिंदगी जीना बेहतर है।
हमारे समाज को कदम कदम पर अपमानित किया जा रहा है ,हमारे मान और सम्मान को ठेस पहुंचाई जा रही है एवं हमारे लोगों को गुलाम बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।
इस पर बाबा साहब आंबेडकर का कहना था की गुलाम को गुलामी का एहसास करा दो फिर वह क्रांति कर उठेगा।
हमारे समाज को हम लगातार गुलामी का एहसास करा रहे हैं क्योंकि आज जरूरत क्रांति की है न की शांति की।
गुजरात तो एक छोटी सी झांकी है अब आगे आगे देखना पूरे देश में क्या क्या होगा वो देखना अभी बाकी है।
सौ - बी एल बौद्ध
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