मुजे उस दिनका इंतेझार है जब जश्न सरकार नहीं, लेकीन जनता मनाये.

मराठवाडा पानीको रो रहा है...
बुंदेलखंड खानेको रो रहा है...
नशे से बर्बाद पंजाब रो रहा है...
व्यापमसे खुनसे तना मध्यप्रदेश रो रहा है..
किशान रो रहा है...
जन घनके खाली खाते रो रहै है...
मजदूर रो रहा है...
CBI देखके तोता भी रो रहा है...
नौकरीवाले PF को रो रहे है...
आरक्षणको मजबूर सवर्ण रो रहा है...
विध्यार्थी रो रहे है...
सोमालीया देखके ज्ञान रो रहा है....
लखटकीया शूट देख फटेहाल रो रहा है..
जंतर मंतर पे सैनिक रो रहे है...
स्वर्णकार रो रहे है...
आजादी रो रही है...
महेंगाइसे गृहिणी रो रही है...
फर्जी डिग्रीसे देशका सम्मान रो रहा है...
सरकारी शिक्षा रो रही है...
पडोशीसे रिश्तोपे विदेशनीति रो रही है..
लोकशाही रो रही है...
निहालचंदसे संसद रो रही है...
सरकारी आरोग्य रो रहा है...
असुरक्षासे महिला रो रही है...
छोटे उध्योगपति रो रहे है...
गंगा मैया रो रही है...
अल्पसंख्यक रो रहा है...
गाय माता रो रही है...
चिक्कीकांडसे बच्चोका निवाला रो रहा है..
दलित रोहितकी मां रो रही है...
फर्जी राष्ट्रवादसे भारतमां रो रही है....
दंगोसे त्रस्त जनता रो रही है...
बुद्धिजीवी रो रहे है...
आर्टीस्ट रो रहा है...
फिल्मकार रो रहा है...
राष्ट्रीय एवोर्ड विजेता रो रहा है...
कशमीरमें सेनाका सन्मान रो रहा है..
वैज्ञानिक रो रहा है...
इमानदार कीर्ती आजाद रो रहा है..
तेलकी मलाइ खाते देख नसीब रो रहा है..
शहिद जवानकी विधवा रो रही है...
जुठसे त्रस्त सच रो रहा है...
मिड डे मिलमें कीडे खाता बच्चा रो रहा है..
साहित्यकार रो रहा है....
इमानदार पत्रकारीता रो रही है...
लूडका सेन्सेक्स रो रहा है...
मंत्रीकी गुंडाइ से थर्राइ प्रजा रो रही है...
कश्मीरमें तिरंगा रो रहा है...
सहिष्णुता रो रही है...
घटता एक्सपोर्ट रो रहा है...
इमानदार अधिकारी रो रहा है...
आर्टीकल 370 रो रहा है...
बाबा साहेबका संविधान रो रहा है...
गुजरातका कुपोषीत बच्चा रो रहा है...
कर्जमें डूबी बेन्क रो रही है...
तोडा मरोडा इतिहास रो रहा है...
अयोध्यामें राम लल्ला रो रहा है...
RBIका गवर्नर रो रहा है...
सुप्रिम कोर्टका जज रो रहा है...
अन्नाका लोकपाल बिल रो रहा है...
विपक्षी राज्य सरकार रो रही है...
घटती नौकरीयां रो रही है...
गुजरातमें शराबीकी बीबी रो रही है...
नागरीकोका अधिकार रो रहा है...
लूडका रूपिया रो रहा है...
भाषण सूनके कान भी रो रहे है...
आम आदमीका सुख चैन रो रहा है...

सारे मालिक रो रहे है...

और चौकीदार हमारे पसीनेकी कमाइके 1000 करोड सिर्फ एक दिनमें खर्चके फूल पेज एडसे न्युज पेपर भरता है और बोलिवुडके ठुमको के साथ जश्न मना रहा है...

कीस बात का जश्न ?? पुर्ण बहुमतकी सरकार होनेके बावजुद एक भी चुनावी वादा 2 सालमें पुरे न करने का ?

मुजे उस दिनका इंतेझार है जब जश्न सरकार नहीं, लेकीन जनता मना पाये !

खैर, पहेलेके जमानेमें भी  राजा भी तो ऐसे ही राज्यकी चिंता छोडके जश्नमें डूबे रहेते थे !! तभी तो भारत देश बरबाद हुआ था !!

मेरा देश बदल रहा है...
हर कोइ रो रहा है...

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