Shayari part 87

1. काश तकदीर भी होती ज़ुल्फो की तरह..
जब जब बिखरती तब तब संवार लेते..

2. चलो तोड़ते है आज, ज़िंदगी के सारे उसूल अपने..................!!
अब के बरस बेवफाई और दगाबाजी, दोनों हम करेंगे

3. बस यही सोचकर छोड़ दी हमने जिद्द मोहब्बत की,
अश्क़ तेरे गिरे या मेरे....रोयेगी तो मोहब्बत ही...!!!

4. "कहानी बन के जियें हैं, वो दिल के आशियानों में,
हमको भी लगेगी सदियाँ, उन्हें भुलाने में"

5. फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ “इश्क” मुकम्मल, . .
इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है….!!!!!!

6. कहाँ मिलता है कभी कोई समझने वाला,
जो भी मिलता है समझा के चला जाता है...

7. उसके दिल पर भी, क्या खूब गुज़री होगी..
जिसने इस दर्द का नाम, मोहब्बत रखा होगा..!

8. तेरी खुशी के लिये तुझसे फासले तो कर लिये ...
लेकिन सच कहूँ ऐ जान ! अब जीने का मन नहीं होता ...

9. वो भी क्या ज़िद थी, जो तेरे मेरे बीच इक हद थी !
मुलाकात मुकम्मल ना सही, मुहब्बत बेहद थी...!!

10. बहुत उदास हुआ, शहर का तेरे तमाशा देखकर;
लोग हँसते है यंहा, किसी को रोता देखकर!

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