इतना बड़ा झूँठ लिखते समय शर्म नही आई

हनुमान स्पेशल
“हनुमान ज्ञान गुण सागर” अथार्त्: हनुमान का ज्ञान सागर से भी बड़ा था।
बताइये तो इतना बड़ा झूँठ लिखते समय शर्म नही आई तुलसीदास को और न इन अंध भक्तों को ही पढ़ने में शर्म आती है।
सोचिये ज़रा हनुमान का ज्ञान कहाँ चला गया था जब लक्ष्मण के लिए हिमालय पर्वत पर जड़ी बूटी ढूँढ रहा था?
मान लो तब हनुमान की अकल घास चरन चली गई थी।
इसलिए वो हिमालय पर्वत को ही उठालाया। जब हनुमान हिमालय पर्वत उठा सकता है तो फिर लंका जाने के लिए पुल बनाने की क्या जरुरत थी?
ये बन्दर हनुमान तो पूरी सेना को बड़ी ही आसानी से ले जा सकता था?
मान लो फिर हनुमान की अकल घास चरने चली गई थी।
अब समुन्द्र मैं कंकड़ ,पत्थर से पुल बनाने की क्या जरूरत थी?
इसमें समयकी बर्बादी हो रही थी हनुमान दो चार हिमालय पर्वत ही समुन्द्र मैं उतार देता, तो पुल जल्दी बन जाता।
उधाहरण अगर आप क्रेन चलाने बाले से कहो कि भाई हमारी छत पर एक बार मैं एक ईंट पहुंचानी है तो क्रेन बाला आपको पागल ही कहेगा,इससे या साबित होता है कि हनुमान दिमाग से कितना पैदल था।
मान लो फिर बन्दर हनुमान की अकल घास चरने गयी थी।
राम नाम लिखा पत्थर नहीं डूबता फिर राम और राम की सेना क्यों डूब रही थी?
अगर नहीं डूब रही थी तो फिर ये‘रामसेतु’ बनाने की ज़हमत राम और हनुमान ने क्यों उठाई?
क्यों क्यों इतनी समय की बेवजह बर्बादी की?
फिर ये लाइन कियों लिख दी गयी है:
‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीसतिहु लोक उजागर’ये लाइन कहाँ मेल खाती है हनुमान के लिए..?
बस अंध भक्तों आस्था के नाम पर अंधे बने रहो !

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