आख़िर अपनी आत्मा को कया कहेगा
ये एक विचार है आज के दोर के tv के पाखंडी लोगो के लिए इसको अनुपम खेर जेसे चापलूस लोगो से जोड़ के ही देखेकल्पना कीजिये कि श्रीनगर एयर पोर्ट पर गांधी जी पहुँचते एनआईटी के छात्रों से मिलने और पुलिस उन्हें रोकती तो वे क्या करते ? कायरों की तरह अगली फ़्लाइट से फ़ोटो खिंचवा कर वापिस नहीं आ जाते , वे वहीं पर अपने अधिकार के लिये धरना या भूख हड़ताल पर बैठ जाते जो कि जेल तक में जारी रहता, छूटने पर या जम्मू तक छोड़ दिये जाने की सिथति में पुन: पैदल ही श्रीनगर चल देते रास्तें में कारवाँ बढ़ता रहता और मौलिक अधिकार की लड़ाई को कोर्ट कचहरी आदि में भी तब तक लड़ते जब तक कि सरकार झुक कर उन्हें एनआईटी में सादर प्रवेश नहीं करने देती । वहॉं पहुँच कर छात्रों को सत्याग्रह और अहिंसा की सीख देते और उनसे पूरे देश में मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये आंदोलन चलाने को कहते । कम से कम १०% प्रतिशत छात्र उनके पूर्णकालिक सिपाही बन गये होते और गांधी का सत्याग्रह सरकार , पुलिस , सेना की संयुंक्त शक्ति पर भारी पड़ता। यह भी संभव है कि बजाय लौटने के वे पाकिस्तान बार्डर पर पहुँच कर सड़क रास्ते से नियमानुसार वीज़ा लेकर पाकिस्तान वाले कश्मीर पहुँच कर भारत पाक एका या महासंघ के लिये लड़ रहे होते। एक सफलता से दूसरी के लिये ज़मीन बनाना और लाखों को उसमेंजोडना कोई गांधी से सीखे , उनके तरीक़े से सीखें । कैसे एक मामूली सवाल नमक का या देशी कपड़े का चरखे के ज़रिये , एक सशक्त हथियार बना दिया था ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध । और यहॉं देखिये स्वार्थी नचनिया जोकर हवाई अड्डे से दब्बू की तरह लौट आया ! गले में पड़ा चमक हीन पद्म भूषण का तमग़ा अब बोझ ही बन जायेगा और रात में एेसे अवसरवादियों को नींद भी नहीं आती होगी । आख़िर अपनी आत्मा को कया कहेगा ? मुझे उन छात्रों की चिंता है जो अपने हाल पर छोड़ दिये जायेंगें क्यों कि स्वत:स्फूर्त उनहोंनें झंडा तो फहरा दिया लेकिन अब उनकी कोई ख़ैर ख़बर लेने वाला नहीं होगा। छ: महीने रुक कर देख लेना क्या होगा उनका ?
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