तब तक हम महिला-दिवस मनाने के योग्य नहीं बन सकते.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को  विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। यह दिन हमें महिलाओं को दोयम दर्जे से मुक्ति के फलस्वरूप किये जाने वाले उन सभी प्रयासों और आंदोलनों की याद दिलाता है जो की आज इतिहास का पन्ना बन चुके हैं और बनने जा रहे हैं.
भारतीय समाज विरोधाभासों से भरा पड़ा है. एक तरफ तो हम महिलाओं को देवताओं की तरह पूजते भी हैं और उनके जलने को भी त्यौहार का रूप देते हैं . क़ानूनी अधिकारों के बावजूद भी हमारी न्याय व्यवस्था बेईमानों और गलत लोगों के हाथों में झूल रही है. अपराध के सारे प्रमाण होने पर भी बलात्कारी को सजा नहीं मिलती उल्टा जिस पर जुल्म हुआ है वही समाज की गुन्हेगार बन जाति है.
हमारी सबसे बड़ी विडम्बना है की जाति और धर्म के बदलने के साथ ही लोगों की सहानुभूति भी बदल जाति है और न्याय व्यवस्था भी लचीली हो जाती है. ऐसे समाज में क्या हम महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की बात कर सकते हैं जहाँ पर जाति और धर्म के अनुसार महिलाओं को सम्मान और न्याय का पैमाना भी बदल जाता है
जब तक समाज में हर महिला को समान और महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता तब तक हम महिला-दिवस मनाने के योग्य नहीं बन सकते. सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक न्याय, शोषण मुक्ति, समान अधिकार और समान आस्तित्व आदि कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनके बिना हम भारतीय समाज को स्वस्थ समाज की श्रेणी में नहीं ला सकते क्यूंकि आज भी हम धर्म और जाति की संकीर्णता के साथ महिलाओं से व्यवहार कर रहे हैं और समय बदलने के बावजूद उनकी समस्याओं को खत्म करने की बजाये लगातार बड़ा रहे हैं.
फिर भी महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को प्रणाम और जो संघर्ष कर रहे हैं उनको शुभ कामनाएं.
आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हार्दिक बधाई……..

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