"बगावत की आँधी"

जुबां पे "राम" गर आये तो "कांसीराम" हो जाए,
जमीं जन्नत बना देंगे अगर यह काम हो जाये।
फुले साहू कहते है की बहुजन इस कदर उठो,
फलक से नूर छीनेंगे अगर परवाज़ हो जाये।
बिगुल जब भीम का बजने से ही लोग डरते है,
भीम वाले दहाड़े तो दुश्मन का नाश हो जाये।
सिर्फ बहुजन फ़लसफ़े में ही हुक्मरां बनने का फन है,
यही प्रचार हो जाये तो नैया पार हो जाये।।
साजिशे चल रही है दुश्मनो की अपने ही घर में
पता ये बात सबको हो तो यलगार हो जाये।
बहुत नज़दीक है वह दिन लड़ाई जीत लेने के
अगर विखरे चमन के गुल सभी एक हार हो जाये।।

उनकी साजिशो के हर सियासत तब जान पाओगे
बनावटी बातों में चेहरे की अगर पहचान हो जाये ।
ये मत भूलो भीम सेना के तुम जांबाज सिपाही हो ,
दहाडो इस कदर की दुश्मन के पाँव उखड़ जाएं।
मै समुन्दर की तरह गरजती हूँ सैलाव बन कर,
ताकि हमारे लोगों में दहाड़ता तूफ़ान आ जाये।
बगावत का जन्म "बुद्धिजीवियों" की ही गलियो में होगा ,
जिस दिन जलजलो का उमड़ता तूफ़ान आ जाये ।।
नमो बुद्धाय जय भीम

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