जाति जैसे बधंन को स्वीकार नहीं करेगी !
आज आवश्यकता है अपनी व अपने समाज की पहचान स्थापित करने की ,
क्योंकि आगे आने वाली जनरेशन जाति जेसे बधंन को स्वीकार नहीं करेगी !
दलितों की बडी समस्या की
हकीकत यह है कि दलित समाज केवल "आरक्षण" का फायदा लेने के लिए डॉ आंबेडकर के पाले में आते हैं । उसके बाद पुनः ब्राह्मणवाद के पाले में चले जाते है.
आरक्षण के अलावा दलित वो सभी कर्मकांड, पोंगापंथ और अंधविश्वास में ब्राह्मणों से ज्यादा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है।
कावड़ यात्रा हो, गणपति उत्सव हो या नवरात्रा का गरबा डांस पांडाल सर्वाधिक दलित बस्तियों में ही नज़र आएँगे।
बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य के लिये पैसे भले न हो लेकिन पांडाल को सजाने में, बड़ी बड़ी मूर्ति खरीदने में, DJसाउंड के लिये, सजावटी कपडों के लिये पैसो की और समय की कोई कमी नहीं है।
मतलब दलित खुद ही ब्राह्मणवाद मनुवाद को मजबूत कर रहे हैं।
जय भीम
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