धर्म की झूठी शान

छाती ठोककर अपने-अपने मज़हब का ढोल पीटते हो...समझते भी हो कि मज़हब क्या है...ज़रा-ज़रा सी बात पर लड़ने को तैयार हो जाते हो..जानते भी हो कि इसका अंजाम कितना भयानक होगा...बस, कोई बोल भर दे..ये लो जी..किसे काटना है बताओ...तलवार से ना सही..ज़ुबान कौन सी कम है...उसके ज़हर बुझे तीर तो सीधा दिल के आर-पार हो जाते हैं...इतनी नफ़रत धधक रही है सीने में कि खुद को कुछ मिले या ना मिले...दूसरे को कुछ नहीं मिलना चाहिए...अपने मज़हब से काम की एक बात नहीं सीखना..लेकिन दूसरों के मज़हब पर कीचड़ उछालना मत भूलना..सारी ज़िंदगी चाहें किल्लत और धक्के खाने में निकल जाए लेकिन धर्म के नाम पर अपने पैर इतने पसारो कि दूसरे का आंचल मैला हो जाए...अगर ऐसा नहीं करोगे तो राजनीति की रोटियां कैसे सिकेंगी...फिर चाहें अपने घर में रोटी हो या ना हो...वैसे भी मां के आंसुओं और बिलखते बच्चों की परवाह किसे है...पहले एक-दूसरे का खून तो पी लें..तो चलो, क्यों ना इस ज़िंदगी को धर्म की झूठी शान पर कुर्बान कर दें...धरती को तो स्वर्ग बना नहीं सके...जन्नत को ज़रूर नर्क बना देंगे...

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