संसद या अखाडा

हमारे देश की राजनीती एक अखाडा बन रह गयी है।
जहाँ हमारे नेतागण एक पहलवान की तरह अपने
राजनितिक दल का समर्थन करते हुए अखाड़े में सदा
एक दूसरे से लड़ते ही रहते है। हमारी संसद की जब कोई
महत्वपूर्ण बैठक चल रही हो या किसी मुद्दे पर बहस
हो रही हो तो सोचकर बड़ा अफ़सोस होता है कि
वहां का नज़ारा घर के बच्चों के लड़ने जैसे कोलाहल
से भी ज्यादा ख़राब प्रतीत होता है। उसमे तो कई
नेता इतने शोर शराबे के बीच में भी अपनी घर की
नींद वहां ऐसे पूरी कर लेते है जैसे उन्हें घर में कई दिनों
से सोने को नहीं मिला हो। संसद में जो कुछ भी
होता है वह तो गाँव स्तर की बैठक में भी नहीं
होता है। देखा जाये तो हमारे देश में योग्य नेताओं
की कमी सी महसूस होती है। कहने को तो भारत
एक प्रजातांत्रिक देश कहलाता है किन्तु अफ़सोस
प्रजा के लिए और वो भी तब के मसलन किसान,
मजदूर आदि के लिए ज्यादा बेहतर सुविधाए उपलब्ध
नहीं हो पा रही है। आज भी अनेक गांवों में पक्की
सड़के और बिजली नहीं है। लाखों लोग भीख मांगने
को मजबूर है। कई परिवार खुले आसमान के निचे सोने
को मजबूर है। अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि
इतना सब होने पर
भी हमारी सरकारे सोयी हुई है।

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