ये बात समज लीजीयें
दलित स्कॉलर मर रहे यहाँ, सिटी स्मार्ट हो रही हैं,
जिनने किया अधिकारों का भक्षण हमारे, आरक्षण के लिए उनकी हार्दिक इच्छाएँ हो रही है ।।
मन की बात करते हैं बेमन से, सत्ता के मद में जो मस्त हैं,
मानव संसाधन के मालिक बन बैठे हैं जो, उनका ज्ञान भी देखो कितना ज़बरदस्त है ।।
जहाँ चाय से गाय तक के लिए सम्मान की नदियाँ बहती है,
पाले जाते हैं जानवर यहाँ, फटेहाल इंसानीयत फुटपाथों पर बिलख-बिलखकर रोती है ।।
नीति-अनीति सब जायज़ है राज सत्ता के दरवारों में,
गलत आचरण, भ्रष्टाचार, नाजायज़ है, केवल शब्दों और अखवारों में ।।
बहुत हुआ अब, बन बहुजन अपने अधिकारों को जान लीजिए,
वोट से बड़ा नहीं कोई हथियार बात भीम की मान लीजिए ।।
सौ : कलमकार की "कलम से"
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