ईश्वर द्वारा कहीं बात गलत तो नही ?????

ईश्वरवादियो का एक मत यह हैं कि इंसानों का
भाग्य पहले से ही लिखा है।इंसानों के साथ अच्छी
बुरी जो भी घटना होती है वह भाग्य के प्रतिफल
होती हैं।
ईश्वर वादियों का दुसरा मत यह है कि यदि इंसान
गलत कार्य (पाप) करेगा तो उसे नर्क व जहन्नुम में
सजा दी जाएगी। बुरे कर्मों की सजा इंसान को
सहनी पड़ती हैं।
अब यदि ये कहा जाए कि इंसानों का भाग्य पहले से
ही लिखा है तो इंसानों पर अच्छे बुरे कर्मों का दोष
कैसे लगाया जाता सकता है ? क्योंकि इंसान तो
भाग्य के अधीन कार्य कर रहा है ।
और यदि ये कहा जाए कि इंसान अच्छे बुरे कर्म के
लिए स्वयं जिम्मेदार हैं तो उसे भाग्य कैसे कहा जा
सकता है ?
सोचने वाली बात तो यह है कि ये दोनों विरोधी
विचारधारा गीता में हैं। जब दो विरोधी
विचारधारा आमने सामने होती हैं तो दोनों में से
किसी एक का गलत होना सुनिश्चित है। चुकी ये
दोनों विचारधारा ईश्वर की वाणी गीता में हैं और
दोनों में से एक विचार का गलत होना सुनिश्चित है
। तो यहाँ विकट स्थिति यह पैदा होती हैं कि जिसे
हम ईश्वर द्वारा कहीं बात समझते हैं कहीं वो ही तो
गलत नहीं !

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