फिर ये सबके सब संविधान और तिरंगे के प्रेमी कैसे हो गए??

बाबा साहब अंबेडकर का नाम रटने को मजबूर है BJP-RSS, जबकि मिलती नहीं है विचारधारा

मोदी सरकार अंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 26 नवंबर 2015 को बड़े पैमाने पर संविधान दिवस मनाने का ऐलान किया था। अलग-अलग मंत्रालय लेख-भाषण प्रतियोगिता के साथ समानता-दौड़ आदि का भी आयोजन किया था। सवाल उठता है कि अचानक राष्ट्रीय स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के भीतर बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के प्रति श्रद्धा और प्रेम भाव क्यों  उमड़ा।

राष्ट्र दरअसल कल्पना का ख़ास ढंग का संगठन है। इसलिए प्रतीकों का काफ़ी महत्व होता है। जिन प्रतीकों के माध्यम से हम अपनी राष्ट्र की कल्पना को मूर्त करते हैं, उनकी जगह नए प्रतीक प्रस्तुत करके एक नई कल्पना को यथार्थ करने का प्रयास होता है। तो हम उस राजनीतिक दल के संविधान प्रेम को कैसे समझें जिसकी पितृ-संस्था, यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस पर मात्र इसलिए अपना विश्वास जताया था जिससे उस पर गाँधी की हत्या के बाद लगा प्रतिबंध हटाया जा सके। आख़िर यही शर्त सरदार पटेल ने उसके सामने रखी थी। वरना उसका ख़्याल था कि मनुस्मृति से बेहतर संविधान क्या हो सकता है! याद रहे कि इस संगठन ने तिरंगा ध्वज को भी मानने से इनकार किया था यह कहकर कि तीन रंग अशुभ और अस्वास्थ्यकर होते हैं। इस तिरंगे के चक्र पर इस संघ और दल के एक वरिष्ठ नेता, अब मूक मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी ने यह कहकर ऐतराज़ जताया था कि यह बौद्ध धर्म का प्रतीक है। फिर ये सबके सब संविधान और तिरंगे के प्रेमी कैसे हो गए?

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