पत्रकारिता सत्ता के खिलाफ ही होती है

पहला हिंदी पत्रकार जिसने 100 शीर्ष भारतीयों में जगह बनाई है।
कल रवीश कुमार ने भारत के न्यूज एंकर सर्वे में जीत दर्ज की है।
उनको 4178, अर्नब को 1700, रोहित सरदाना को 1540, सुधीर चौधरी को 1300 और दीपक चौरसिया को 81 वोट मिले।
इसके पहले रवीश कई बार बेस्ट जर्जर्नलिस्ट ऑफ द ईयर का पुरस्कार जीत चुके हैं,एशियाई पत्रकारों में बेस्ट बन चुके हैं। लेखक के तौर पर भी उन्हें एवार्ड मिल चुका है। कई इंटरनैशनल मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं। एक घंटे के शो के लिए 18 घंटे की मेहनत और रिसर्च करते हैं। उनका किताबों का बजट ही 10-12 हजार रुपये महीने का होता है। जितना कांग्रेस की आलोचना करते थे, उतना ही भाजपा की भी। हो सकता है कि सरकार के किसी समर्थक को बुरा लगता है लेकिन पत्रकारिता सत्ता के खिलाफ ही होती है, जिस दिन से पत्रकार सरकार की आलोचना बंद कर देगा उस दिन से लोकतंत्र खतरे में, चाहे जिसकी सरकार हो। सरकार के पास अपने कार्य को एडवर्टाइज करने के लिए तो हजारों करोड रुपये हैं। अब सरकार आपकी है तो आलोचना भी आपकी ही होगी। यही आदमी कांग्रेस के घोटालों पर लगातार 15-15 बहस करवाता था, आज भी भाजपा के वो नेता उसे बेस्ट ही कहते हैं जो लोकतंत्र समझते हैं।
अन्यथा इस देश में सबसे तेज और पहले का दावा करने वाले कई चैनल और पत्रकार कोर्ट से सजा पाकर बंद हो चुके हैं। जब पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन के दौरान सडको पर था तो दीपक चौरसिया जैसे लोग अन्ना हजारे के खिलाफ रिपोर्ट करके कांग्रेस के साथ खडे थे। सत्ता के साथ कई चैनलों ने पाले बदले हैं। जिनके हर चुनाव सर्वे बिलकुल गलत होते हैं।

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