भेदभाव का मतलब यह है क्या?

इस भारत देश में-

◾कुत्ता-देव
◾बन्दर-देव
◾गाय-देव
◾बैल-देव
◾साँप -देव
◾चींटी- देव
◾मछली- देव
◾सूअर- देव
◾वाघ- देव
◾शेर- देव
◾गरुड़- देव
◾बकरी- देव
◾बरगद- देव
◾तुलसी का पौधा-देव
◾दूब-देव
◾नदी-देव
◾समुद्र-देव
◾सूर्य-देव
◾चंद्र- देव
◾आग-देव
◾वायु-देव
◾जल-देव
◾बिल्ली-देव
◾चूहा-देव
◾खरगोश-देव
◾कबूतर-देव
◾चमगादड़-देव
◾आकाश-देव
◾पाताल- देव
◾तालाब पोखर-देव
◾पृथ्वी-देव
◾घोडा-देव
◾कौआ-देव
◾मोर-देव
◾यहाँ तक की पत्थर भी देव

:~ पर मानव........?

◾रविदास-चमार
◾गोरा-कुंभार
◾सावता-माली
◾नरहरि- सुनार
◾चोखा-महार
◾नामदेव-दर्ज़ी

:~ नाम--जाति , फिर क्यों?

◾रामदास-स्वामी
◾ज्ञानेश्वर- माउली (मां के सामान
अतिउत्तम) ये कैसे? , ये किसका षड़यंत्र है?

बहुजन समाज का संत होता है तो उसके नाम के आगे उसकी जाति लिखी जाती है.

और ज्ञानेश्वर के आगे उसकी जाति नहीं ऐसा क्यों?

इसका कारण यह है कि बहुजन समाज का यदि कोई संत होता है तो उसे जाति सीमा तक रखा जाये
और ब्राह्मण संत हुआ कि सबके प्रिय सबसे उच्च।

ऊपर सात महासंतो के नाम है लेकिन एक के नाम के आगे पीछे स्वामी या माउली शब्द नहीं है ये विचित्र परम्परा पंडितों की दी हुई है हमको ये परम्परा खत्म करनी होगी. हमारे महापुरूषों के साथ भी ऐसा ही हुआ है

जैसे-

◾आंबेडकर -दलितों के नेता
◾शिवाजी महाराज - मराठों के नेता
⬛ बिरसा मुंडा -आदिवासी नेता
◾महात्मा फुले-मालियों के नेता
◾अण्णा भाऊ साठे-मातंगों के नेता

किंतु

◾तिलक-लोकमान्य
◾सावरकर- स्वाधीनता वीर
◾प्रमोद महाजन-देश के नेता
◾अडवाणी -देश के नेता
◾गडकरी-देश के नेता

सभी ब्राह्मण नेता-देश के नेता

◾गोपीनाथ मुंडे-बहुजन नेता
◾महादेव जानकर-धनगर नेता
◾कांशीराम, मायावती, रामदास आठवले- दलित नेता
◾मुलायम, लालू, शरद- यादवों के नेता.

✅मित्रों, बहुजन समाज के प्रत्येक नेता महापुरुष ने अपनी जाति के बाहर भी ऐतिहासिक कार्य किये हैं फिर भी उन्हें जाति तक सीमित रखा गया है ।

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