असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का तरीका??
कुछ दिन पहले बीजेपी के ही स्टूडेंट विंग ABVP ने JNU में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए (इसका सबूत आप पहले ही एक वीडियो में देख चुके हैं) और इसका इलज़ाम JNU के विद्यार्थियों पर लगा कर जेल में डाल दिया गया और फिर शुरू हो गयी देश भक्ति और देश द्रोही की बहस।
हर टीवी, अखबार, सोशल मीडिया, हर जगह ये बहस हो रही है।
ये सच मुच देश भक्ति का जोश है या फिर असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का तरीका???
बीजेपी पहले भी ऐसे घटिया और नीच तरीकों का इस्तेमाल करके जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाती रही है।
अब ज़रा गौर कीजिये पिछले कुछ दिनों में हुई बातों से जिन पर आपका ध्यान नहीं गया क्योंकि बीजेपी ने इस तरिके से आपका ध्यान भटका दिया
1) मोदी सरकार ने देश के गौरव PSLV (हांजी वही PSLV जिसने दूसरे देशों के उपग्रह भी अंतरिक्ष में पहुंचाए हैं और देश का नाम रौशन किया है) को प्राइवेट कंपनियों को बेचने की तैयारी कर ली है
2) देश की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। सेंसेक्स धड़ाम से नीचे गिरा है
3) अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल के दाम गिरने के बावजूद भी देश में पेट्रोल डीजल के दाम नहीं गिरे क्योंकि मोदी जी ने पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी है।
4) जीडीपी के नए फॉर्मूले के हिसाब से आंकड़े तो ऊपर जा रहे हैं पर IIP के आंकड़े पाताल में घुसते जा रहे हैं।
5) मोदी जी के विरोध के बावजूद अमेरिका पकिस्तान को विमान बेच रहा है। मोदी जी की चमचागिरी और विदेश नीति की हवा निकल रही है।
6) मोदी सरकार ने उद्योगपतियों का 1.80 लाख करोड़ का ऋण माफ़ कर दिया। बैंक घाटे में चले गए।
7) लेकिन किसानो की फसलें नहीं खरीदी गयी ना ही उनको आर्थिक सहायता दी गयी। जो धान पिछले साल सरकार में 2100 में खरीदी थी वो अब्की बार प्राइवेट कंपनियों ने 900-1000 में खरीदी। किसानो पर कर्ज बढ़ता जा रहा है और उसकी मोदी जी को फ़िक्र नहीं।
लेकिन उद्योगपतियों का कर्ज माफ़ करने के लिए पैसे हैं मोदी जी के पास। दुसरे देशों को बांटने के लिए पैसे हैं मोदी जी के पास।
लेकिन उद्योगपतियों का कर्ज माफ़ करने के लिए पैसे हैं मोदी जी के पास। दुसरे देशों को बांटने के लिए पैसे हैं मोदी जी के पास।
8) बाजार में मंदा पड़ा है। जमीन के भाव 25% रह गए। सभी व्यापारी खाली बैठे हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है।
लेकिन, एक ही झटके में, मोदी जी ने अपने प्यादों की सहायता से लोगों का ध्यान इन सब मुद्दों से भटका कर, खुद ही बनायी हुई बहस में फंसा दिया।
इसे कहते हैं राजनीति !
लेकिन क्या हम इतने नासमझ हैं?
लेकिन क्या हम इतने नासमझ हैं?
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