अब ये आरएसएस का प्लान B है.

जरूर गौर करें हर दो तीन महीने पर कहीं न कहीं से उठने वाली आरक्षण की मांग का मक़सद ही यही है कि देश में आरक्षण व्यवस्था के विरुद्ध एक फैब्रिकेटेड माहौल तैयार किया जाये,
एक पब्लिक ओपिनियन को क्रिएट किया जाये. यह सन्देश दिया जाये कि आरक्षण व्यवस्था ही मूल समस्या है न कि समाधान.
दरअसल डेमोक्रेटाइज़ेशन के प्रोसेस से सवारों का वर्चस्व टूट रहा है और सदियों से वंचित रहे वर्गों की न्यूमेरिक स्ट्रेंथ अब रिफ्लेक्ट होना शुरू हो गयी है और समय के साथ इसको अब बढ़ना ही है.
यह एक सोची समझी साजिश है जिसके तहत सरकार स्थिति को तब तक बिगड़े रखना चाहती है
जब तक जन सामान्य को दैनिक जीवन में अव्यवस्था न हो जाये, लोग रोज़ रोज़ के तमाशे [जैसा कि साबित करने की मंशा है] से त्रस्त न हो जाएं.
हमने पाटीदार और जाट, दोनों मामलों में समानता देखी है अन्यथा ऐसी कौन सी सरकार होती है जो एक तरफ लॉ एंड आर्डर के स्टेट सब्जेक्ट होने का दम भरते नहीं थकती है
और दूसरी तरफ हालत बिगड़ने पर मूक दर्शक बन जाती है.
गुजरात और हरियाणा दोनों ही जगह बीजेपी की सत्ता है और केंद्र भी इनका है तो
अब क्या कारण है कि हालत संभल नहीं रहे?
दरअसल जानबूझ के संभाले नहीं जा रहे हैं. बिहार में आरक्षण समीक्षा का कार्ड फेल हुआ है और अब ये आरएसएस का प्लान बी है. हालाँकि संवैधानिक पेचीदगियों के चलते आरक्षण से खिलवाड़ लगभग असंभव है
लेकिन जनता के मन में अविश्वास पैदा करना तो आसान ही है. सजग रहे, सतर्क रहे

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