Shayari Part.77

1. "चाँद का क्या कसूर अगर रात बेवफा निकली,
कुछ पल ठहरी और फिर चल निकली,
उन से क्या कहे वो तो सच्चे थे,
शायद हमारी तकदीर ही हमसे खफा निकली."

2. न पूरी तरह से क़ाबिल न पूरी तरह से पूरा है,
हर एक शख्स कहीं न कही से अधूरा है.

3. मेरी हिम्मत को परखने की गुस्ताखी न करना,
पहले भी कई तूफानों का रुख मोड़ चुका हूँ!!!!

4. आइना देख कुछ यूँ मुस्कुराया वो,
जैसे खुद का गम खुद से ही छुपाया हो,

5. प्यार में हर आशिक तब हो जाता है मजबूर
जब हसीना दिल तोडकर चली जाती है उससे दूर

6. ना पूरी तरह से गैर हैं......ना पूरी तरह से तेरे हैं !!
पर देख....एक तेरे दूर होने से हम कितने अधूरे हैं..!!

7. ए इश्क मुझको कुछ और जख्म चाहियें
अब मेरी शायरी में वो बात नहीं रही

8. बचपन मे तो फिर भी लुका-छिप्पी
मे हम दोनों मिल जाया करते थे...
जब से बड़े हुए है मिलते ही नहीं है !!

9. बर्बाद करके उसने पूछा,,फिर करोगे मुझसे मोहब्बत?
लहू लहू था दिल,,,मगर होंठ कह गये, ब़ेपनाह य़कीनन ! 

10. शहर भर मेँ एक ही पहचान है 'हमारी'..,
सुर्ख आँखे,गुस्सैल चेहरा और ''नवाबी अदायेँ..

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